अमित कुमार
नई दिल्ली, 3 मार्च
अर्ध सैनिक बलों के सेवानिवृत्त सिपाहियों ने पार्लियामेंट स्ट्रीट से जंतर मंतर तक हाथो में कैंडल और तिरंगा लिए मार्च निकाला।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा से आए सेवानिवृत त्रिलोक सिंह बताते है। इनकी चार प्रमुख मांगे हैं ,पहला वन रैंक वन पेंशन लागू किया जाए ,दूसरा 2000 के पहले के पेंशन को लागू किया जाए ताकि 2004 के बाद कें सभी लोगो को पेंशन मिल सके,तीसरा सिविल रूल से बाहर किया जाए और अंत में शहीद का दर्जा दिया जाए। त्रिलोक बताते हैं कि यह कोई पहला आंदोलन नहीं था। पिछले 5 सालों से लगातार यह आंदोलन कर रहे हैं लेकिन सरकार इनकी नहीं सुन रही है। यह प्रधानमंत्री को बताना चाहते हैं अभी पुलवामा हमले में इतने लोगों की मृत्यु हुई है (PulwamaAttack) इन लोगों को शहीद का दर्जा नहीं मिला।हर मीडिया चैनल बोल रहा है यह शहीद हुए लेकिन आपको बता दु उन्हे शहीद का दर्जा नहीं मिला हैं।इन्होंने आह्वान किया है कि इन सब की मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए क्योंकि जब जीएसटी एक रात में लागू हो सकता है तो इनकी मांगे क्यों नहीं मानी जा सकती।
उत्तरप्रदेश के रामदीन के अनुसार 5000 किलोमीटर ऊंचाई पर अर्धसैनिक बल आइटीबीपी के रहते हैं और देश की रक्षा करते हैं आज हम उनकी बदौलत रात को चैन से सोते हैं। इनका कहना है आम आदमी सेना और अर्द्ध सैनिक बल में अंतर ही नहीं जानती हैं। लोगों को लगता है जो सुविधाएं सेना को मिलती है वह हमें भी मिलती है लेकिन ऐसा नहीं है। प्रधानमंत्री भी बार-बार सेना के जवान शहीद हुए बोलते रहते हैं।
अर्जुन प्रसाद के अनुसार सरकार कहती है सेना बॉर्डर पर देश की सुरक्षा करती है इसलिए उन को शहीद का दर्जा दिया जाता है। 1999 के बाद से अब तक ऐसा कोई युद्ध नहीं हुआ लेकिन हम तो हर दिन हर समय देश के आंतरिक भागों की सुरक्षा में लगे रहते हैं फिर भी हमारे साथियों की मृत्यु होने पर शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है।सरकार हमारे साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।प्रसाद कहते हैं सरकार सेना और अर्द्धसैनिक बलों के पे स्केल को एकसमान करें।
सेवानिवृत्त मोहन प्रसाद बताते हैं 2001 में पे स्केल लेवल बदल दिया गया। इससे इनके सेवानिवृत्त होने पर जो राशि मिलती है व इनसे 1 साल पहले सेवानिवृत्त बलो से 40हजार का अंतर है। जबकि इन्होंने ने भी पूरी सर्विस की हैं। अब तो पेंशन भी बंद हैं। इन्होंने मांगे नहीं मानने पर आगामी चुनाव में सरकार को सबक सिखाने की चेतावनी दी।
सीआरपीएफ के इन बलों ने सामूहिक रुप से अपनी समस्या को लेकर पिछले साल राजनाथ सिंह से मुलाकात की। सिंह ने इन्हें आश्वासन दिया इनकी मांगों पर गौर किया जाएगा लेकिन अब तक इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से मिलने की कोशिश की है लेकिन नहीं मिल पा रहे हैं।
मीडिया से इन्होंने गुजारिश की कि इनकी आवाज को प्रधान मंत्री तक पहुंचाया जाए। लोकसभा चुनाव को देखते हुए ये आशा व्यक्त करते हैं कि इनकी मांगों को मान लिया जाएगा।
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