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महिलाओ की सुरक्षा के साथ खिलवाड़

अभी कठुआ व उन्नाव की घटना के कुछ ही दिन बिते थे ,की अब मंदसौर में नाबालिक लड़की से दुष्कर्म का मामला सामने आया हैं। एक 8 साल की नन्ही सी जान एम्स में  जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है ।आज पब्लिक का गुस्सा कहां है आज पब्लिक कहां है वह इंसाफ की मांग क्यों नहीं कर रही है ।आज हमारे विपक्ष के राजनेता कहां है उन्हें केवल अपना चुनावी  एजेंडा दिखाई दे रहा है , वह सरकार के ऊपर आरोप क्यों नहीं लगा रहे हैं कि वह लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर सकती है ।
                  सरकार ने  पॉक्सो में सुधार करके फांसी का सजा देने का प्रावधान पास किया था फिर भी यह दुष्कर्म क्यों हुआ क्या सरकार ने कानून बनाकर अपनी कमियों को छुपाया है। क्या केवल फांसी के सजा का प्रावधान ही काफी था क्या इसके लिए कानून व्यवस्था दुरुस्त करने की  आवश्यकता नहीं थी। क्या इसके लिए लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता नहीं है क्या सरकार  को आवश्यक नहीं था कि वह जितना अपने प्रचार प्रसार पर खर्च करती है उसके बजाय वह पॉक्सो के ऐसे कठोर कानून के बारे में प्रचार प्रसार करें और लोगों को जागरुक करें ताकि ऐसी घटना करने वाले लोग के जेहन में फांसी की सजा का डर तो आए। सरकार ने तो कानून  बदल कर फांसी का प्रावधान करके अपना पीठ थपथपा लिया  ताकि उनके ऊपर सवाल नहीं उठ सके कि उन्होंने कुछ नहीं किया और अपनी नाकामी को छुपा सके।
                   मैं मानता हूं इसके लिए केवल सरकार ही जिम्मेवार नहीं है। अभिभावकों की भी इतनी ही जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चे को निगरानी में रखें ।यह उन्हें किस प्रकार का माहौल दे रहे हैं उनकी  मानसिकता या सोच कैसी बन रही है ।वह अपने से बड़े को किसी व्यक्ति  महिला बुजुर्ग से किस प्रकार का बर्ताव कर रहे हैं। विद्यालय में उन्हें किस प्रकार की शिक्षा मिल रही है उनकी संगति किस प्रकार के लड़कों के साथ है । वह कहां आ जा रहे हैं।
                  मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं कुछ लोग इसे धर्म के नाम पर चलाना चाहते हैं l WhatsApp और Facebook पर मैसेज चलाया जा रहा है कि यह बेऔलादों की सरकार है अपनी महिलाओं बेटियों और बच्चों की रक्षा खुद करें तो क्या इसे इस घटना के परिप्रेक्ष में सही मान लिया जाए।

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